🌹एक श्रद्धेय स्वामी गुरु एक बार देर रात राजा के महल के पास पहुंचे। पहरेदारों ने उसे नहीं रोका क्योंकि सभी उन महान गुरु को जानते थे । वह राजा के सिंहासन की ओर जहां राजा बैठा था। वहां गए । राजा ने भी उन महान गुरु पहचान लिया।
🔸 "आपका स्वागत है गुरुदेव। आप क्या चाहते हो?" राजा ने पूछा।
🔸"मैं आज रात इस सराय में सोना चाहता हूं", गुरुदेव ने कहा।
🔸राजा विस्मय में पड़ गया कुछ देर सोचने के बाद गुरु से बोला, राजा ने कहा, "यह कोई सराय नहीं है! यह मेरा महल है ”
🔸 गुरुदेव ने विनम्रता से पूछा, "क्या मैं आपसे एक साधारण प्रश्न पूंछ सकता हूं कि आपके पहले इस महल का मालिक कौन था ?"
🔸"क्यों, मेरे महान पिता जी, निश्चित रूप से! परन्तु वह अब मर चुके है। ” राजा ने उत्तर दिया।
🔸 "और तुम्हारे पिता से पहले यहाँ का मालिक कौन था?"
🔸 “मेरे दादा, स्वाभाविक रूप से। वह भी मर चुके है। ”
❤️गुरुदेव ने विनम्रतापूर्वक कहा "यह इमारत जहां लोग कुछ समय के लिए आते हैं रहते हैं खाते हैं और चले जाते हैं, क्या आप यह नहीं जानते इस तरह के भवन को सराय या धर्मशाला ही कहा जाता है।आप इसे राजमहल कहते हैं
🔸राजन हम हो या आप हम सभी इस धर्मशाला के अतिथि ही हैं।
🔸मित्रों ईश्वर ने हमें इतनी सुंदर दुनियां रहने को दी हैं। हमारा कर्त्तव्य है इस दुनिया के पर्यावरण के बरबाद न करें न होने दें। इस दुनिया में हम अतिथि की तरह रहें अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ हवा पानी आदि को संरक्षित करें
❤️मित्रों लेख कैसा लगा कृपया अपने विचार/कमियां कमेंट्स के जरिए अवश्य बताएं पढ़ने के लिए धन्यवाद।
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